Introduction:- Indian Railways
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रेलवे यानी ट्रेनें दुनिया के किसी भी देश के लिए सिर्फ केवल एक परिवहन का हिस्सा नहीं है, अपितु उस देश का Economic Power, Social Connectivity, and New Technology का आईना होता है। दूसरे शब्दों में रेलवे वास्तव में किसी भी देश के इकोनॉमिकली रीढ़ की हड्डी होता है। भारत, जापान, चीन और वियतनाम जैसे बहुत अधिक जनसंख्या व भीड़भाड़ वाले इलाके में एवं उनके— विविध भौगोलिक स्थितियों वाले देश के लिए सबसे उपयुक्त परिवहन हैं, लेकिन इन सभी देशों के रेलवे के प्रणालियों में फर्क साफ साफ दिखाई पड़ता है। जापान देश अपनी हाई-स्पीड “शिंकानसेन” ट्रेनों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है शिकानसेन से तो जापान देश का मूल पहचान जुड़ा हुआ है, वही चीन जैसे विकसित देश ने पिछले 15 सालों में अपने निरंतर लगातार प्रयासों से पूरी दुनिया का सबसे बड़ा हाई-स्पीड नेटवर्क स्थापित करके खड़ा कर दिया है, और भारत, पूरी दुनिया में विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क होते हुए भी, अब भी गति और तकनीक के मामले उन सब देशों बहुत ज्यादा पीछे है। सवाल यह नहीं है कि — क्या भारत जापान और चीन जैसे विकसित देशों के रेल नेटवर्क व स्पीड के मामले में कभी मुकाबला कर सकता है, बल्कि ये है कि क्या हम कभी इन जैसे देशों के पास जो टेक्नोलॉजी है जो system है क्या हम वो कभी प्राप्त कर पाएंगे। सवाल भारतीय रेलवे के भविष्य का है, क्या हमारे पास वो टेक्नोलॉजी है क्या हमारे पास वो वर्ल्ड लेवल का इंफ्रास्ट्रक्चर है, और क्या हम कभी इन सब चीजों को डेवलप भी कर पाएंगे? आइए जानते है आज के इस लेख में।
भारतीय रेलवे – एक विशाल लेकिन धीमी रफ्तार प्रणाली
भारतीय रेलवे की शुरुआत सन् 1853 ईसवी में हुई थी जिसको सबसे पहले मुंबई से ठाणे के बीच में चली थी और आज भारतीय रेलवे ने करीब 68,000 किलोमीटर से भी ज्यादा ट्रैक पूरे भारत भर में व 7,000 से भी अधिक स्टेशन के साथ, और 2.3 करोड़ से भी ज्यादा दैनिक यात्रियों के साथ दुनिया का सबसे व्यस्ततम नेटवर्कों में से एक नाम शुमार कर रखा है। भारतीय रेलवे का माल ढुलाई में भी बहुत बड़ा योगदान है, खासकर कोयला, अनाज और अन्य औद्योगिक सामान को ले आने जाने में अधिक प्रयोग किया जाता है।
पर अगर हम तकनीकी स्तर के लिहाजे से अगर हम भारतीय रेलवे की बात करे तो भारत ने हाल के वर्षों में एक नई ट्रेन लॉन्च की है नई टेक्नोलॉजी तो हम नहीं कह सकते है वैसे उसका नाम है वंदे भारत जिसे आप जानते होगे, वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनें है जिसको भारत ने Semiurban इलाकों में लॉन्च की हैं, जो करीब 160 किमी/घंटा की गति से ही दौड़ सकती हैं। जो फिलहाल के हिसाब कुछ भी ज्यादा स्पीड नहीं है , इससे पहले के जो पुरानी ट्रेनें थी वो भी करीब 120 से 140 km की गति से पहले भी चला करती थी। खैर! लेकिन जब इसके विपरीत हम अपनी रेलवे को अपने पड़ोसी देश जापान और चीन से तुलना करते हैं, तो यहां पर स्पष्ट हो जाता है कि गति और समय (Time ) की पाबंदी और आराम के मामले में भारत की जो अभी कंडीशन है अभी भी इन सब देशों कई गुना पीछे है।
साथ ही साथ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी भारतीय रेलवे का बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी औपनिवेशिक दौर का हिस्सा बना हुआ पड़ा है, जहां पटरियों, पुलों और सिग्नलिंग सिस्टम को अपग्रेड करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। भीड़, लंबी वेटिंग लिस्ट और ओवरलोडेड ट्रैक अभी भी भारत के हर राज्य की प्रॉब्लम है जिसको भारतीय रेलवे ने आज तक इस चुनौतियां को पार नहीं कर पा रही हैं। ठीक इसके विपरीत सेम जनसंख्या होने के बावजूद चीन जैसे देश इन सब मामलों में भारत से कही अधिक आगे है।
जापान – सटीक समय और नए टेक्नोलॉजी का जिता जगता प्रमाण
जापान अपने सटीक समय और नए टेक्नोलॉजी के मामले में पूरी दुनिया प्रसिद्धि पाई हुई है। एक सेकंड की लेट हुए ट्रैनों के लोको पायलट यात्रियों से क्षमा मांगते है। अपने काम के प्रति इतना अनुशासन बहुत बड़ी बात है। जापान की जो रेलवे प्रणाली का सबसे बड़ा गौरव है वो शिंकानसेन है, जिसे दुनिया की पहली हाई-स्पीड ट्रेन के रूप में सन 1964 में लॉन्च किया गया था। आज भी यह नेटवर्क 3,000 किमी से अधिक लंबा है और ट्रेनों की जो औसत गति है वह करीब 240–320 किमी/घंटा की है।
जापान की जो सबसे बड़ी खासियत है वो सिर्फ स्पीड नहीं, बल्कि समय की पाबंदी और सुरक्षा भी है। इसके साथ आरामदायक यात्रा के मामले में यह पूरे विश्व में नंबर 1 की पोजीशन पर कायम है। आपको जानकार हैरानी होगी कि शिंकानसेन जो ट्रेनों है उनकी औसत लेट होने का समय है वो एक मिनट से भी कम का है — वह भी पूरे साल के औसत के तौर पर ये नहीं की केवल महीने के हिसाब से। और तो और सुरक्षा के मामले में भी, अब तक शिंकानसेन नेटवर्क पर एक भी यात्री की मृत्यु ट्रेन दुर्घटना में नहीं हुई है। जो आज तक रिकॉर्ड है।
जापान में हाई-स्पीड नेटवर्क के साथ-साथ मेट्रो एवं उनके लोकल ट्रेन और रिजनल ट्रेनों के बीच में भी शानदार तालमेल है। इनकी जो रेल सेवा है वो पूरे देश में यात्रा को यात्रियों के लिए आसान और भरोसेमंद बनाता है।
चीन – हाई-स्पीड ट्रेनों के क्रांति का दुनियां का नया सम्राट
चीन ने साल 2008 से ही हाई-स्पीड रेलवे में निवेश करना शुरू कर दिया था और आज देखो उसके पास 40,000 किमी से ज्यादा का हाई-स्पीड रेल नेटवर्क है — जो दुनिया के बाकी संपूर्ण सभी देशों को मिलाकर भी उससे ज्यादा की है। चीन में ट्रेनों की गति 250–350 किमी/घंटा तक हर एक ट्रेन की होती है, और बीजिंग से शंघाई जैसे हाइटेक सिटी की जिनकी दूरी लगभग 1,300 किमी की है इतने बड़े लंबे रूट को भी ये ट्रेनें सिर्फ 4.5 घंटे में कवर कर लेती है। सोचिए आप time of consumption कितना कम है
चीन ने न केवल पूरी दुनिया मे तकनीक के मामले में महारत हासिल की, बल्कि उन नए नए चीजों की लागत कम करके और उन सब चीजों को तीव्र गति के साथ निर्माण करके दुनिया को चौंका दिया है। वहां एक दिन में 20–30 ट्रेनों की हाई-स्पीड सर्विस चलाना बहुत ज्यादा आम बात बन चुका है।
चीन ने अपने देश के विकास के लिए रेलवे को राष्ट्रीय विकास की रणनीति का एक हिस्सा बना कर बैठा हुआ है, जिससे वहां के उस देश का यह व्यापार, पर्यटन और शहरीकरण को बहुत तेज तेज गति के साथ आगे बढ़ा रहा है।
तुलना – भारत बनाम जापान और चीन
अगर हम इन सभी तीनों देशों की तुलना अपने देश से करें तो जो तस्वीर निकल कर सामने आती है वो कुछ प्रकार से इस तरह बनती है:
जापान की रेलवे तकनीक
जापान की रेलवे प्रणाली दुनिया की सबसे भरोसेमंद और समय के उपयोगी में मानी जाती है।
प्रमुख विशेषताएं
1. शिंकान्सेन (बुलेट ट्रेन) –
- पहली बार 1964 में शुरू इसकी हुई थी
- इसकी औसत गति: 320 km/h तक की है
- औसत देरी: 50 सेकंड से भी कम (विश्व में नंबर 1 के मामले पर है यह देश ट्रेन की देरी के मामले में)
2. सुरक्षा – 50+ साल में कोई भी यात्री की मौतट्रेन हादसों से नहीं हुई है रिकॉर्ड है ये आज तक किसी भी देश का (ट्रेन हादसे के मामले में)
3. भूकंप सुरक्षा तकनीक – सेंसर से ट्रेन तुरंत रुक जाती है, यह जापान के ट्रैनों की खासियत है। जापान में हमेशा अक्सर भूकंप आते रहते है। इसलिए ट्रैनों को भी इन सब का सामना करना पड़ता है इसलिए उन्होंने एक नई टेक्नोलॉजी को ईजाद किया है जिससे भूकंप आने के पहले ही ट्रेन सिग्नल देने लगते है।
4. समयबद्धता – शेड्यूल से कुछ सेकंड का अंतर ही होता है जापान के ट्रेनों का।
जापान ने रेलवे को न केवल परिवहन साधन बना रखा है, बल्कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा और तकनीकी में सर्वोत्तम का प्रतीक बना दिया है। वहां पर ट्रेन का लेट होना ही अनुशासन की लापरवाही माना जाता है।
चीन की हाई-स्पीड ट्रेन प्रणाली
चीन ने हाई-स्पीड रेलवे कार्यकमों के विकास में पिछले 15 साल में अद्भुत छलांग लगाई है। आज चाइना की प्रगति से सभी देश हैरान है। की कैसे कोई देश इतनी तेजी के साथ विकास की दौड़ में शामिल हो सकता है।
मुख्य तथ्य
- नेटवर्क लंबाई – 45,000 किलोमीटर से ज्यादा (दुनिया में सबसे ज्यादा)
- गति – 350 km/h तक
- पहली हाई-स्पीड लाइन – 2008 में शुर
- यात्रियों की संख्या – सालाना 2 बिलियन से ज्यादा
विकास रणनीत
- तेज निर्माण (सालाना हजारों किलोमीटर ट्रैक बिछाना)
- बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश
- स्वदेशी तकनीक का विकास और विदेशी सहयोग
- बड़े शहरों के बीच यात्रा समय में भारी कमी—बीजिंग से शंघाई (1,300 km) केवल 4.5 घंटे
भारत की रेलवे
- नेटवर्क लंबाई ~68,000 किमी (ind)~27,000 किमी (Jap)~155,000 किमी (CHN)(कुल), 40,000+ HSR
- हाई-स्पीड नेटवर्क बहुत सीमित ~3,000 किमी ~40,000 किमी की है।
- अधिकतम जो गति 160 किमी/घंटा (वंदे भारत) 320 किमी/घंटा 350 किमी/घंटा बाहरी देशों के है
- समय की जो पाबंदी है वह भारत देश की मध्यम की है और बाहरी सभी देशों की लगभग परफेक्ट व उच्च गति की है।
- सुरक्षा रिकॉर्ड अच्छा, लेकिन हादसे होते हैं भारत में बहुत ज्यादा कारण पूरी रेलवे प्रणाली रेल ट्रैक को रख रखवा न करना वही दूसरी तरफ जापान और चीन जैसे देशों की उत्कृष्ट व बहुत अच्छा है।
- तकनीकी नवाचार सीमित है अपने देश में वही जापान और चीन जैसे देशों में अत्याधुनिक तेज और बड़े पैमाने की गति पर काम किया जाता है।
यह साफ है कि जापान गुणवत्ता और सुरक्षा में दुनिया का बादशाह बना हुआ है तो वहीं गति के मामले में पूरी दुनिया में चीन सबसे आगे है, जबकि भारत इन सभी पैमाने में तो बहुत छोटा है इसके साथ साथ स्पीड और टेक्नोलॉजी में भी इन देशों से अभी बहुत पीछे है। जिसे भारत देश को पार लगाने में अभी बहुत ज्यादा मुश्किल है आने वाले सालों में हो सकता है भारत भी अपनी रेलवे प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार लाए पर इसके भारतीय रेलवे को बहुत सारी चुनौतियों को स्वीकार करना पड़ेगा व उनके अंदर बहुत बड़े बदलाव भी करने पड़ेंगे। आने वाली जो पीढ़ी है वो सिर्फ रफ्तार की है, और भारत जैसे घनत्व आबादी के लिए ये बहुत ज्यादा आवश्यक है।
भारत की चुनौतियां
1. इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड –
भारत की जो रेलवे है वो बहुत ज्यादा पुरानी है हालांकि भारत ने 18वीं शताब्दी के अंत में रेल परियोजना स्टार्ट कर दिया था। भारत की ट्रैक और पुल बहुत ज्यादा पुराने हैं, जिन्हें हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए तो बदलना अति आवश्यक है। वरना ट्रेन।की गति बढ़ने पर ट्रैक का टूट जाना लाजमी है।
2. भूमि अधिग्रहण –
नई लाइन और बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में भूमि अधिग्रहण एक बड़ी बाधा है। उनका चौड़ीकरण करना नए लाइनों को बिछाना पड़ेगा।
3. वित्तीय दबाव –
हाई-स्पीड नेटवर्क के लिए भारी निवेश की जरूरत होती है। इसके लिए केंद्र सरकार को रेल के बजट को नए तरीके से पेश करना होगा जहां पर नए नए टेक्नोलॉजी के प्रयोगों के लिए फंड को प्रदान करना होगा।
4. तकनीकी अंतर –
जापान और चीन के मुकाबले भारत में ट्रेन निर्माण और सिग्नलिंग की जो टेक्नोलॉजी है वो अभी भी विकसित हो रही है इनका जो काम है वो बड़ी स्लो रेट के दर से हो रहा है। इनको बढ़ाना होगा।
5. भीड़ और संचालन –
भारतीय रेलवे पर अत्यधिक भीड़ है और इससे निपटने के लिए हमें अधिक ट्रैक की जरूरत पड़ती है परन्तु भारत में सीमित ट्रैक क्षमता का संचालन हो रहा है जो वास्तव में भीड़ को सम्हाला नहीं पा रही है इसे साथ साथ समय को भी धीमा कर रही है।
निष्कर्ष
भारत रेलवे नेटवर्क के जाल में और यात्री के संख्या के मामले में पहले से ही एक वैश्विक शक्ति है। भारत की जनसंख्या आज दुनिया में नंबर 1 की पोजीशन पर है। लेकिन जापान और चीन से मुकाबले के लिए हमें हाई-स्पीड इन्फ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी उन्नति और संचालन दक्षता में ट्रेनों को भी नंबर 1 पर लाना होगा अभी भी भारत बहुत ज्यादा पीछे है इन सब चीजों में इन सब देशों से। भारत को अभी भी बड़े सुधार की जरूरत है।
जापान से भारत को समयनिष्ठा और सुरक्षा सीख सकता है, कैसे अनशाशन किया जाता है किस तरह से समय की पाबंदी जरूरी होती है। इसके साथ साथ भारत को चीन से तेज निर्माण और बड़े पैमाने पर कैसे निवेश किया जाता है इन सब के मॉडल को भारत को समझना चाहिए। अगर भारत अपने मौजूदा सुधार कार्यों, बुलेट ट्रेन परियोजनाओं और स्वदेशी तकनीकी विकास को सफलतापूर्वक लागू कर देता है, तो अगले 10-15 वर्षों में भारत भी हाई-स्पीड रेल के वैश्विक मंच पर गंभीर दावेदार ठोक देगा।
अगर आप भविष्य की ट्रेनों और नई तकनीक के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमारा ये वाला लेख जरूर पढ़ें।
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