Why West boycotting Islam
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Western Countries Are Boycotting Islam and Muslim Refugees Image Source From Pixabay Free to Use. |
आज के समय में दुनिया एक नए मोड़ पर आ खड़ी है। एक तरफ विश्व के सभी देश वैश्वीकरण (Globalization) के कारण, पूरी दुनिया को एक-दूसरे के करीब ला रखा है, तो वहीं दूसरी तरफ धर्म, जाती, संस्कृति और मानव जीवनशैली के कारण समाज में एक नई खाई एक नई दूरी पैदा हो गई है। इस समय दुनिया भर में जिस मुद्दे पर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, Global Time में वह है — पश्चिमी देशों (Western countries) और उनका मुस्लिम समुदाय के प्रति बढ़ता हुआ गुस्सा और नफरत की भावना। ये आज के Time पर बहुत बड़ी मुद्दा का विषय बन चुका। जिसके कारण मुझे भी अपने मन की बात को लिखना पड़ रहा है।
आप देख सोशल मीडिया पर देख रहे होंगे कि एलन मस्क जैसे बड़े लोग भी इस मुद्दे को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं। उनके ट्वीट्स ट्विटर पर आए दिन ट्रेंड कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि उन्होंने इस मामले पर पूरी तरह से खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। इसके अलावा वो तरह तरह की वीडियो भी अपने X हैंडल पर अपलोड करते रहते है। उनका कहना है कि दुनिया की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान (Cultural Fabric) को बचाना आज के समय में बहुत ज्यादा ज़रूरी चुका है, वरना समाज अपने ही बनाए हुए संघर्षों में फसता और धसता चला जाएगा।
लेकिन अब असली सवाल ये उठ रहा है कि आखिर ये हालात पश्चिमी देशों में बने क्यों रहे है? क्यों ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश खुलेआम मुस्लिम शरणार्थियों (Refugees) और इस्लामी संस्कृति (Islamic Culture) के खिलाफ बड़े स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं?
आपको 13 सितंबर को ब्रिटेन में हुए प्रोटेस्ट तो याद ही होगी। 13 सितंबर को ब्रिटेन में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए थे और वहां पर वो मांग कर रहे थे कि मुस्लिम शरणार्थियों को देश से बाहर निकाला जाए। इसके अलावा कुछ दिन पहले ही फ्रांस में भी यही घटना हुआ था, परन्तु पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसे विरोध प्रदर्शन बार बार हो चुके है जो एक सोचनीय विषय बनता जा रहा है।जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। सैम ये सब देशों से मिल रहा है। असल में इन देशों के बड़े बड़े मंत्रियों ने तो खुले आम मुस्लिम समुदायों और शरणार्थियों का खुल कर विरोध किया था। जिसके लेकर अरब के मुस्लिम लोगों ने खुल कर जम के आलोचना भी किए थे।
तो अब ऐसा लग रहा है कि मानो पश्चिमी देश मुस्लिम समुदाय का बहिष्कार करने के मूड में पूरी तरह से आ चुके हैं। उनके लिए उनके देश में मुस्लिम शरणार्थी या प्रवासी एक बहुत बड़े पैमाने पर बोझ बन गए हैं। और ये सिर्फ कोई गलतफहमी की वजह से नहीं ही रहा है, बल्कि इसके पीछे लंबे समय से जुड़ी कहानियाँ हैं — आतंकवाद, अपराध और शरणार्थियों के व्यवहार से जुड़ी हुई बहुत बड़ी कहानी है। वास्तव में यूरोपीय देश बहुत ज्यादा सम्पन्न और शांति देश माने जाते थे। परन्तु हाल के कुछ सालों में क्राइम का लेवल बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ गया था। तो आइए आज इस लेख को पूरी अच्छी तरह से समझते है।
शरणार्थी के स्वागत से लेकर इंकार तक के सफर की कहानी (Muslim refugees in the West)
तो कहानी साल 2000 के बाद से शुरू होती है, जब मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में युद्ध और संघर्ष बढ़ रहे थे, तो पश्चिमी देशों ने मानवीयता के नाम पर अपने देश के दरवाज़े शरणार्थियों के लिए खोल दिए थे। शायद उन्हें सेक्युलरजिजम का भूत सवार था। उस समय यूरोप के बड़े बड़े सम्पन्न देशों ने और अमेरिका ने हजारों लाखों शरणार्थियों को शरण दी अपने देश में, वहां पर उन्हें बसने का मौका दिया कुछ करने का मौका दिया।।
लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले समय में यही शरणार्थी इतने बड़े पैमाने पर अपराध, नशे, अवैध हथियारों और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल पाए जाएंगे। खासतौर पर इन देशों ने तो इतना कभी कल्पना भी नहीं किया था। ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस की पुलिस रिपोर्ट ये साफ बताती हैं कि अपराधों और शरणार्थियों की आबादी का गहरा रिश्ता सबसे ज्यादा है। अपने ब्रिटेन की 100 लोगों की पाकिस्तानी मुस्लिम अपराधियों की Poster न्यूज में हाल ही में सुर्खियों बटोरी थी पूरे वर्ल्डवाइड में। जिसके कारण इन सब देशों में बड़े पैमाने पर क्राइमरेट बढ़ गया खुले आम मर्डर खुले आम रेप खुले आम गोली मारना अवैध कब्जा करना तमाम प्रकार की चीजें होने लगी। जिससे वह के निवासी तंग आके सरकार की विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर सड़क पर उतरने लगे। उनका कहना था कि शरणार्थी के कारण उनका उनका इतिहास उनका अस्तित्व उनका धर्म उनका संस्कृति उनकी संप्रभुता सब पर बड़े पैमाने पर आघात हो रहा है।
आतंकवाद और इस्लाम का नाम सबसे बड़ी मुद्दा (Islamophobia in Europe and America)
जब भी आतंकवाद की बात होती है, सबसे पहले लोगों के जहान में एक समुदाय का नाम आता है इस्लामी आतंकवाद का। अल-कायदा, आईएसआईएस, तालिबान, बोको हराम — इन सभी संगठनों ने खुद को इस्लामी विचारधारा से जोड़ा। और इस बात को कोई नकार नहीं सकता, आज पूरी दुनिया जान रही है कौन सा धर्म आतंकवाद को फैला रहा है कौन सा देश उसे पनाह देता है।
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West boycotting Refugee, Protest Upon Islamophobia at Western countries Image Source From Pixabay |
यही वजह है कि पूरी दुनिया में यह धारणा बन गई है कि आतंकवाद का सीधा संबंध इस्लाम से है। यह सही हो या गलत, लेकिन आम लोगों के दिमाग में यह गहराई से बैठ गया है। जिसकी वजह से उन सभी देशों के लोगों में एक कट्टरता की भावना पैदा हो गया है, अगर ये सभी लोग यह पर रहेंगे तो आने वाले समय में यह खूबसूरत देश नर्क में तब्दील हो जाएगा। आप खुद ही सोच कर देखिए एक तरह जहां ओपन माइंड के लोग रहते है जहां पर 100 % लिटरेचर है वह पर कोई ये बोले कि हमें बस सरिया कानून चाहिए तो हम संविधान को नहीं मानते तो क्या होगा। ये एक गंभीर मसला है जो भारत देश में भी है। आइए इस पर अच्छे से खुल कर बात करते है।
मेज़बान देश और इस्लामी संस्कृति का टकराव (Cultural clash between West and Islam)
एक और बड़ी वजह यह है कि मुस्लिम शरणार्थी उन देशों के नियम-कानून और संस्कृति को अपनाने में हिचकते हैं। हमेशा अपने चीजों को सही ठहराना ठीक नहीं होता। कभी कभी आपको उस देश के नियम कायदा कानून को मानना पड़ता है। जर्मनी, फ्रांस या ब्रिटेन जैसे सम्पन्न देशों में जाने के बाद भी ये लोग वहां पर अपनी मनमानी कर रहे वो भी सड़कों पर उतर कर। ये जाहिल लोग अपने शरीया कानून को ही मानना चाहते हैं। महिलाओं के अधिकार, लैंगिक समानता, एलजीबीटी अधिकार — इन सबको स्वीकार करने से शरणार्थी इनकार कर देते हैं।
इससे वहां की उदार और खुले समाज वाली संस्कृति से उनका टकराव होता है। जिसका लोगो को बड़े पैमाने पर सामना करना पड़ा और स्थानीय लोगों में गुस्सा और नाराज़गी फैलती चली गई। और आज हकीकत आपके सामने है, इसका आपको जीता जगता example आपको भारत के शरणार्थी से सीखना चाहिए।
भारतीय प्रवासी: एक सकारात्मक और नए बुलंदियों का उदाहरण
इसके विपरीत भारतीय प्रवासियों को अगर हम बाहरी देशों में देखें तो तस्वीर बिल्कुल अलग मिलती है। भारतीय जहाँ भी गए, वहाँ के कानूनों का पालन किया, उन लोगों का उनके समाज का सम्मान किया और मेहनत से अपना नाम रोशन किया अपना नाम जग में बनाया। यही वजह है कि भारतीय प्रवासी हर जगह सम्मानित हैं आज उनकी एक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, और ये सब लोग किसी देश पर बोझ नहीं बने हुए है।
इस अंतर को समझने के लिए, मुस्लिम शरणार्थियों की तुलना प्रवासी भारतीयों से करना बहुत उचित होगा। आप जानते तो है भारतीय दुनिया के लगभग हर एक कोने में बसे हुए है वह पर प्रवासी के तौर पर रहते हैं - आप चाहे तो सिलिकॉन वैली से लेकर दुबई तक देख ले, लंदन से लेकर सिडनी तक कही पर भी देख ले। लेकिन भारतीयों की जो वैश्विक छवि बनी हुई है वह उनकी कड़ी मेहनत, पेशेवर रवैये और शांतिपूर्ण एकीकरण की वजह से बनी हुई है।
आज भारतीय मूल के डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और उद्यमी अपने मेज़बान देशों में बहुत बड़े योगदान देते हैं। वे वहां पर उस देश में कर (Tax Pay) देते हैं, स्थानीय कानूनों का उचित तरीके से पालन करते हैं, और यही सब बातों की वजह से अक्सर व्यापार, प्रौद्योगिकी और राजनीति में नेतृत्वकारी पदों पर भी पहुँचते हैं। तो फिर लोग उन्हें ख़तरा समझने के बजाय, अपने आदर्श के रूप में देखते है समझते है।
एक आतंकवाद समुदाय और एक बहुप्रतीस्थित कई सारे कंपनी का CEO वाले समुदाय में कई सीढ़ियों का अंतर है। शायद आपको समझ में आ गया होगा कि मैं क्या कहना चाहता हु।
पश्चिमी देशों के डेबिट में बहसों में अक्सर इस चीज की तुलना का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा क्यों है कि भारतीय प्रवासी इतनी अच्छी तरह से अनुकूलन कर लेते हैं, जबकि कई मुस्लिम समुदाय उस देश के कानून के प्रतिरोधी बने रहते हैं? इसका उत्तर नागरिक भावना, एकीकरण की इच्छा और मेज़बान देश की संस्कृति उनकी संप्रभुता के प्रति सम्मान में की दृष्टि से देखना है।
महिलाओं के अधिकार और इस्लामी समाज का रवैया (Western rejection of Muslim migrants/refugees culture)
पश्चिमी देश महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता को सबसे ज़्यादा महत्व देते हैं। वह पर महिलाओं के लिए कोई भी रोक टॉक नहीं है वहीं, कई मुस्लिम देशों में आज भी महिलाओं को बराबरी के अधिकार भी नहीं मिलते है। इसके बहुत सारे उदाहरण है जैसे अफगानिस्तान में लड़कियों का स्कूल जाना मना है, ईरान में हिजाब के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली महिलाओं को जेल में डाल दिया जाता है। सऊदी अरब तुर्की और इराक की अपनी अलग छवि बनी हुई है।
यही कारण है कि पश्चिमी देशों में गुस्सा और बढ़ता चला गया इन लोगों के लिए। जो एक बहुत बड़ा कारण भी रहा लोगो के अंदर नाराजगी का, इसके अलावा बच्चियों का लगातार शोषण और रेप भी बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह था।
मध्य-पूर्व का संकट और वैश्विक असर (Islamophobia in Western countries & Global)
ईरान, अफगानिस्तान, सीरिया, इराक और फ़िलिस्तीन जैसे क्षेत्रों में धर्म आधारित राजनीति ने पूरे समाज को अस्थिर कर दिया है। अब हालत ऐसे बन चुके है कि पश्चिमी देशों को डर है कि अगर वह अपने देश में शरणार्थियों को ज़्यादा जगह दी गई तो तो ज्यादा समय नहीं लगेगा और वही अस्थिरता वहीं मारपीट वही क्राइम वही कल्चर उनके देश में भी पहुँच जाएगी। जिसका वो अब सड़कों पर उतरकर बायकॉट कर रहे है
निष्कर्ष – (Boycott of Islam by Western nations)
आज हालात इतने नाज़ुक हो चुके हैं कि हर तरफ शक और डर का माहौल बना हुआ है यूरोप में। अगर मुस्लिम समुदाय और शरणार्थी अपनी छवि सुधारना चाहते है तो उन्हें खुद पहल करनी होगी — आतंकवाद क्राइम मदर रेप से पूरी तरह दूरी बनानी ही होगी, शरणार्थियों को उन देश के नियमों का पालन करना सिखाना होगा और महिलाओं के अधिकारों का सच्चे मन से समर्थन करना होगा। उनके कल्चर को उनके हिस्ट्री को मानना पड़ेगा।
वरना आज जो विरोध सिर्फ पश्चिमी देशों तक सीमित है, कल वह एक वैश्विक बहिष्कार में बदल जाएगा। और तब इसके नतीजे और भी ज़्यादा खतरनाक साबित होंगे।
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