स्त्री 2: आतंक सरकटे का, एक हिंदी भाषा की कामेडी हॉरर फिल्म है जिसके डायरेक्टर हमारे अमर कौशिक जी है, अमर कौशिक जी हाल ही में कुछ पापुलर फिल्मों जैसे मुंज्या, भेड़िया, बाला आदि का निर्देशन किया है। स्त्री 2 फिल्म के लेखक निरेन भट्ट जी ने किया है और ये फिल्म जिओ स्टूडियो और मैडॉक फिल्म्स के बैनर तले बनी हुई है।
इस फिल्म में कुछ प्रमुख अभिनेता कास्ट किए गए है
फिल्म के मैन एक्टर श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव, अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी, तमन्ना भाटिया, वरुण धवन, व आपारशक्ति खुराना है।अमर कौशिक निर्देशित फ़िल्म स्त्री 2 एक मनोरंजक फ़िल्म है।
फ़िल्म की कहानी:
कहानी की शुरुवात उसी गांव यानी चंदेरी से स्टार्ट होती है, पर इस बार चंदेरी गांव में एक एक करेके गांव की सभी लड़कियां अचानक से गायब हो रही है।
गांव में एक सिरकटे वाला भूत एक एक करके गांव की सभी लड़कियों को अगवा कर रहा है।
इस बार गांव की सभी लड़कियों को बचाने की जिम्मेदारी, स्त्री ( जो की श्रद्धा कपूर है) वो लेटी है, अपनी मदद के लिए वो राजकुमार राव को चुनती है, ताकि वो मिलकर गांव की लड़कियों को बचा सके।
यहां पर सरकटा राक्षस, बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) और रूद्र (पंकज त्रिपाठी) की ( चिट्ठी और शमा) प्रेमिकाओं का अपहरण कर लेता है।
पर उनके अपहरण में एक ख़ास बात यह होती है कि वो गांव की आधुनिक सोच की लड़कियों का ही अपहरण करता है।
विक्की ( जो राजकुमार राव है फिल्म में) उनका मदद उनके दोस्त बिट्टू, जना और रूद्र जी करते है। अब ये सब लोग मिलकर क्या गांव में होने वाली घटनाओं को रोक पाते है की गांव से लड़कियां ऐसे ही गायब होती सभी मित्र मिल कर कैसे उस सरकटे से लड़ते है कैसे उसको गांव से भागते है, चिट्टी और शमा समेत गांव की और सभी लड़कियों को कैसे बचाते हैं, कैसे एक अनाम (श्रद्धा कपूर) लड़की जिसे पूरे गांव में कोई नही जानता कैसे इन सब का साथ देती है। इसी कहानी के आधार पर ये कहानी आधारित है। यही सब इस पूरी कहानी में दिखाया गया है।
पहला और दूसरा भाग:
फ़िल्म का पहला भाग (इंटरवल से पहले) ज्यादा मजेदार लगता है। बढ़िया बैकग्राउंड म्यूजिक से डायरेटर दर्शकों को बीच–बीच में थोड़ा डराने और चौंकाने में कामयाब रहे। बस सरकटे को देख कर लोगो में डर कम और हंसी ज्यादा आती है।
हल्की–फुल्की कॉमेडी के साथ कुछ डबल मीनिंग संवादों के साथ पहला हॉफ समापत होता है।
दूसरे भाग में फ़िल्म थोड़ी सी ढीली पड़ती है और आपका ध्यान एक दो बार घड़ी पर जा सकता है।
पर क्लाइमेक्स में फ़िल्म फिर पटरी पर लौटती है। बढ़िया सिनेमेटोग्राफी और एक्शन से अंत, फ़िल्म समापत होती है।
फ़िल्म का गीत संगीत मन को भाता है वे बढ़िया लगते है।
स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?
राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर और पंकज त्रिपाठी की तिकड़ी ने अपनी एक्टिंग से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। खास तौर से राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी की कॉमिक टाइम लाजवाब लगी है। अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी ने भी दर्शकों को खूब गुदगुदाया है।
फिल्म में अक्षय कुमार का कुछ समय के लिए आना आपको सरप्राइज दे सकता है, ये निदेशक के द्वारा काफी सराहनीय काम है जिसे देखकर आप हतप्रभ हो सकते हैं। उन्हें अचानक स्क्रीन पर देखना शानदार एक्सपीरियंस होगा आपके लिए। कुछ समय के लिए वरुण धवन भी 'भेड़िया' बनकर कुछ सीन्स में सिरकटा से लड़ते दिखाई देंगे आपको। तमन्ना भाटिया का भी कुछ रोल है परंतु थोड़े कम समय के लिए लेकिन प्रभावशाली रोल है।
एक्टिंग डिपार्टमेंट:
आभासी प्रेमिका को दिल और हाथ से याद करने वाले राज कुमार राव ने अपना 💯 दिया है, बेहतरीन अदाकारी। श्रद्धा कपूर ने भी अपने रोल को सहजता और अच्छे से निभाया है।
अक्षय कुमार और वरुण धवन छोटे से रोल में साधारण लगे। ठरक भोरने वाले वरुण से बढ़िया अदकारी तो भेड़िए की रही। ऐन मौके पर भेड़िया का पंच ना पड़ता तो फ़िल्म का अंत दुखद होता।
प्रेमिका को लोरियां से सुलाने वाले अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी ने भी अपने किरदारों को बढ़िया से निभाया।
तो वहीं शमा को मौत के मुंह में पहुंचाने वाले कलयुगी परवाने यानी पंकज त्रिपाठी के वन लाइनर भी कमाल के थे और ऊपर से बढ़िया अदाकारी सोने पर सुहागा।
राजकुमार राव, जब पंकज त्रिपाठी को कहते हैं कि आप तो चिट्ठी को छत पर ले आए थे और उसको खोल कर देखा था। तो अपारशक्ति खुराना को चिट्ठी को चिट्टी (उसकी गर्लफ्रेंड) समझ लेना, जैसे सीन मजेदार हैं।
फ़िल्म देखें या ना देखें:
हॉरर, कॉमेडी पसंद करने वालों केलिए यह एक बढ़िया मनोरंजक फ़िल्म है। वीकेंड में आप अपने पार्टनर के साथ अवश्य देखें या फिर आप अपने परिवार के साथ मिलकर देख सकते है। काफी मनोरंजक फिल्म है।
पर ऐसी फिल्मों को ख़ास करके बच्चों के साथ देखना तो मूर्खता ही होगी।
क्योंकि?
पहला, लाउड बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ हॉरर से बच्चे डर सकते हैं और दूसरा, फ़िल्म में बहुत सारे द्विअर्थी संवाद हैं। सोचिए! स्वयंसेवक की जो परिभाषा फ़िल्म में बताई गई है, अगर बीच फ़िल्म में बच्चे उसके बारे में पूछने लगे तो क्या बताएंगे?
वैसे ऐसे संवाद इस तरह से बोले गए हैं कि कईयों के सर से भी गुज़र सकते हैं। ऐसे संवादों पर मेरे आगे बैठी एक महिला, अर्चना पूर्ण सिंह जैसी हंसी हंस रही थी। पता नहीं उन्हें यह संवाद समझ नहीं आ रहे थे या वो इन्हें ज्यादा एंजॉय कर रही थी।
खैर! कुछ भी कहना मुश्किल है।
रेटिंग: 4/5 स्टार।
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